Hindi Varn Vichar – वर्ण विचार या वर्ण व्यवस्था हिन्दी व्याकरण के अन्तर्गत पढ़ा जाने वाला विषय है। इसके माध्यम से हम सीखते हैं कि भाषा की सबसे छोटी इकाई होने के साथ वर्ण कितना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
हिन्दी भाषा को सीखने और समझने की शुरुआत ही वर्ण से होती है। इसी के आधार पर शब्दों और फिर वाक्यों का निर्माण होता है। इस पोस्ट में आप विस्तार से वर्ण विचार के बारे में पढ़ेंगे।
वर्ण-विचार क्या है?(Varn-Vichar Kya Hai)
(वर्ण से शब्द, शब्द से वाक्य और वाक्य से भाषा का निर्माण होता है।) किसी भी भाषा को लिखने, पढ़ने एवं समझने के लिए सबसे पहले उसके ध्वनि-समूह या सबसे छोटी इकाई के बारे जानकारी का होना आवश्यक है। जब हम बात करते हैं, तो हमारे मुख (मुंह) से ध्वनियाँ निकलती हैं। व्याकरण में ध्वनि का अर्थ वर्ण माना जाता है।
जैसे – सीता गीत गाती है। (इस वाक्य में मीना, गीत, गाती, है – ये चार शब्द हैं। सारे शब्द वर्णों से मिलकर बने हैं।) जैसे –
मीना = म् + ई + न् + आ
गीता = ग् + ई + त् + आ
गाती = ग् + आ + त् + ई
है = ह् + ऐ
उपरोक्त शब्द इसने सम्मुख लिखी ध्वनियों से मिलकर बने हैं। इन ध्वनियों और टुकड़े नहीं हो सकते। इसीलिए इन्हें वर्ण कहा जाता है।
वर्ण की परिभाषा (Varn ki परिभाषा)
यहाँ वर्ण की तीन परिभाषाएँ दी गई हैं।
(1) वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके और भाग (टुकड़े) नहीं किए जा सकते, वर्ण कही जाती है।
(2) वह छोटी से छोटी ध्वनि अथवा इकाई जिसमें अक्षरों की रूपरेखा (योजना) बनाई जाती है,
(3) जिनको बांटा नहीं जा सकता ‘वर्ण’ कहलाते हैं। जैसे – अ, इ, उ, क, ग, घ।
वर्णमाला (Alphabet) की परिभाषा
वर्णों के समूह को ही वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में 52 वर्ण हैं, जो निम्न प्रकार से हैं।
स्वर | अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ | 11 |
आयोगवाह | अं, अः | 02 |
व्यंजन | क्, ख्, ग्, घ्, ङ्; च्, छ्, ज्, झ्, ञ; ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्; त्, थ्, द्, ध्, न्; प्, फ्, ब्, भ्, म्; य्, र्, ल्, व्; श्, ष्, स्, ह् | 33 |
अन्य | ड़, ढ़ | 02 |
संयुक्त व्यंजन | क्ष, त्र, ज्ञ, श्र | 04 |
कुल = 52 |
= हिन्दी में ड़ और ढ़ – इन ध्वनियों का बड़ा महत्व माना जाता है। ये दोनों ध्वनियां ड तथा ढ से बिल्कुल भिन्न हैं। इसीलिए बोलते एवं लिखते समय इन ध्वनियों को स्पष्टता और सावधानी से काम लेने चाहिए। ध्यान रहे कि ड़ और ढ़ शब्दों के प्रारंभ में कभी नहीं आते।
- ऐसे शब्दों को बोलकर इन चारों ध्वनियों (ड, ड़, ढ, ढ़) के उच्चारण के अंतर को समझा जा सकता है।
ड | ड़ | ढ | ढ़ |
डलिया | घोड़ा | ढोलक | पढ़ना |
डाली | गाड़ी | ढेर | बुढ़िया |
मंडी | बड़ा | ढाल | बढ़ई |
डोर | लड़ाई | ढेला | चढ़ाई |
उच्चारण और प्रयोग के आधार पर वर्ण के दो भेद माने जाते हैं –
(1) स्वर
(2) व्यंजन
(1) स्वर (Swar)
उन वर्णों को कहा जाता है, जिनका उच्चारण बिना अवरोध, रुकावट एवं किसी विघ्न-बाधा के होता है।
स्वरों के उच्चारण में हवा हमारे मुख से बिना किसी रुकावट के निकलती है।
हिन्दी में 11 स्वर हैं।
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वर के भेद – अ, इ, उ, ऋ के उच्चारण में आ, ई, ए, ऐ, ओ, औ की तुलना में कम समय लगता है।
उच्चारण में लगने वाले समय की दृष्टि से स्वरों को 3 भागों में बांटा गया है –
(1) हृस्व स्वर (2) दीर्घ स्वर (3) प्लुत स्वर ।
(1) हृस्व स्वर – ऐसे स्वरों के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है, उन्हें हृस्व स्वर कहा जाता है। ये 4 हैं- अ, इ, उ, ऋ।
(2) दीर्घ स्वर – ऐसे स्वरों के उच्चारण में हृस्व स्वरों से लगभग दो गुने का समय लगता है, ऐसे स्वर दीर्घ कहलाते हैं। ये 7 हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
(3) प्लुत स्वर – ऐसे स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है, वे प्लुत स्वर कहलाते हैं; जैसे-ओ३म्। इसका प्रयोग बहुत कम किया जाता है। इस स्वर का प्रयोग प्रायः दूर से बुलाना में किया जाता है; जैसे – आरे३! राम इधर आना३…
स्वरों की मात्राएं – स्वरों का स्वतंत्र रूप से भी प्रयोग किया जाता है, परंतु जब स्वरों का प्रयोग व्यंजनों के साथ मिलाकर किया जाता है, तब उनका स्वरूप प्रवर्तनीय हो जाता है और उन्हें मात्रा कहते हैं। ऐसी स्थिति में केवल मात्राएं ही लगती हैं, जो इस प्रकार हैं-
स्वर | मात्राएं | व्यंजन + स्वर | शब्द | स्वर | मात्राएं | व्यंजन + स्वर | शब्द |
अ | x | क् + अ + र् + अ | कर | ऋ | ृ | म् + ऋ + ग् + अ | मृग |
आ | ा | द् + आ + द् + आ | दादा | ए | े | क् + ए + ल् + ए | केले |
इ | ि | ग् + इ + र् + इ | गिरि | ऐ | ै | च् + ऐ + न् + अ | चैन |
ई | ी | च् + ई + न् + ई | चीनी | ओ | ो | स् + ओ + च् + ओ | सोचो |
उ | ु | ग् + उ + र् + उ | गुरु | औ | ौ | क् + औ + न् + अ | कौन |
ऊ | ू | ध् + ऊ + प् + अ | धूप |
विशेष –र में उ तथा ऊ की मात्राएं नीचे नहीं, बल्कि सामने लगती हैं। इनमें प्रायः भूल हो ही जाती है। ध्यान रखने योग्य है कि र में उ की मात्रा रु की तरह तथा ऊ की मात्रा रू की तरह लगती है। निम्नलिखित उदाहरणों से इन दोनों के अंतर को समझ सकते हैं –
र् + यू (ु) = रु (रुकना, रुस्तम, रुपया) र् + ऊ (ू) = रू (रूप, रूठना, रूस)
अनुस्वार –वे स्वर जिनको बोलते समय हवा नाक से निकलती है, वे स्वर अनुस्वार कहलाते हैं। इसका प्रयोग वर्णों के ऊपर बिंदी (_._) के रूप में किया जाता है; जैसे- पंप, नंगा, अंग आदि।
अनुनासिक -वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय हवा मुख और नाक से निकलती है, वे अनुनासिक स्वर कहलाते हैं। इसका प्रयोग वर्णों के ऊपर चंद्र-बिन्दु () के रूप में किया जाता है; जैसे- चाँद, गाँव, पाँव, पाँच, गूँज आदि।
अनुस्वार पंचम वर्ण (ङ, ञ, ण्, न्, म्) के स्थान पर बिंदी (_._) के रूप में आता है। ध्यान रखें कि अनुस्वार के बाद जो व्यंजन हो, उसी वर्ग का पंचम वर्ण अनुस्वार रूप में लिखा जाता है। जैसे:
कवर्ग | गङगा | (ङ = _._ ) | गंगा |
चवर्ग | बञजर | (ञ = _._ ) | बंजर |
टवर्ग | खण्ड | (ण् = _._ ) | खंड |
तवर्ग | सन्तान | (न् = _._ ) | संतान |
पवर्ग | खम्भा | (म् = _._ ) | खंभा |
आप लोग सभी स्वरों की मात्राएं पढ़ चुके हैं। नीचे सभी व्यंजन मात्राओं के साथ दिए गए हैं। इनका उच्चारण करके मात्राओं का अभ्यास कीजिए।
ा | ि | ी | ु | ू | े | ै | ो | ौ | ं | : | |
क | का | कि | की | कु | कू | के | कै | को | कौ | कं | क: |
ख | खा | खि | खी | खु | खू | खे | खै | खो | खौ | खं | ख: |
ग | गा | गि | गी | गु | गू | गे | गै | गो | गौ | गं | ग: |
घ | घा | घि | घी | घु | घू | घे | घै | घो | घौ | घं | घ: |
च | चा | चि | ची | चु | चू | चे | चै | चो | चौ | चं | च: |
छ | छा | छि | छी | छु | छू | छे | छै | छो | छौ | छं | छ: |
ज | जा | जि | जी | जु | जू | जे | जै | जो | जौ | जं | ज: |
झ | झा | झि | झी | झु | झू | झे | झै | झो | झौ | झं | झ: |
ट | टा | टि | टी | टु | टू | टे | टै | टो | टौ | टं | ट : |
ठ | ठा | ठि | ठी | ठु | ठू | ठे | ठै | ठो | ठौ | ठं | ठ: |
ड | डा | डि | डी | डु | डू | डे | डै | डो | डौ | डं | ड: |
ढ | ढा | ढि | ढी | ढु | ढू | ढे | ढै | ढो | ढौ | ढं | ढ: |
ण | णा | णि | णी | णु | णू | णे | णै | णो | णौ | णं | ण: |
त | ता | ति | ती | तु | तू | ते | तै | तो | तौ | तं | त: |
थ | था | थि | थी | थु | थू | थे | थै | थो | थौ | थं | थ: |
द | दा | दि | दी | दु | दू | दे | दै | दो | दौ | दं | द: |
ध | धा | धि | धी | धु | धू | धे | धै | धो | धौ | धं | ध: |
न | ना | नि | नी | नु | नू | ने | नै | नो | नौ | नं | न: |
प | पा | पि | पी | पु | पू | पे | पै | पो | पौ | पं | प: |
फ | फा | फि | फी | फु | फू | फे | फै | फो | फौ | फं | फ: |
ब | बा | बि | बी | बु | बू | बे | बै | बो | बौ | बं | ब: |
भ | भा | भि | भी | भु | भू | भे | भै | भो | भौ | भं | भ: |
म | मा | मि | मी | मु | मू | मे | मै | मो | मौ | मं | म: |
य | या | यि | यी | यु | यू | ये | यै | यो | यौ | यं | यः |
र | रा | रि | री | रु | रू | रे | रै | रो | रौ | रं | र: |
ल | ला | लि | ली | लु | लू | ले | लै | लो | लौ | लं | ल: |
व | वा | वि | वी | वु | वू | वे | वै | वो | वौ | वं | व: |
श | शा | शि | शी | शु | शू | शे | शै | शो | शौ | शं | श: |
ष | षा | षि | षी | षु | षू | षे | षै | षो | षौ | षं | ष: |
स | सा | सि | सी | सु | सू | से | सै | सो | सौ | सं | स: |
ह | हा | हि | ही | हु | हू | हे | है | हो | हौ | हं | ह: |
- Hindi Varn Vichar – वर्ण विचार या वर्ण व्यवस्था
- भाषा क्या है – Bhasha Kya Hai?
- Balak ke shabd roop – बालक के शब्द रूप
- Hindi ki Boliyan-हिंदी की बोलियाँ, उपभाषा, और अपभ्रंश
(2) व्यंजन (Vyanjan) की परिभाषा
जिन वर्णों के उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, वे व्यंजन कहलाते हैं।
व्यंजनों का उच्चारण करते समय हमारी श्वास-वायु मुंह के किसी भाग (तालु,ओष्ठ आदि) से टकराकर या रुककर बाहर आती है। हिन्दी में 33 व्यंजन हैं लेकिन 4 संयुक्त व्यंजनों और ड़, ढ़ को सम्मिलित करके कुल 39 व्यंजन हैं।
व्यंजन के भेद (व्यंजन के भेद)
व्यंजन के तीन भेद होते हैं-
(1) स्पर्श व्यंजन, (2) अंतःस्थ व्यंजन, (3) ऊष्म व्यंजन
(1) स्पर्श व्यंजन- क् से लेकर म् तक स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। इन व्यंजनों के 5 वर्ग हैं और प्रत्येक वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं,परंतु हिन्दी वर्णमाला में टवर्ग में ड़ तथा ढ़ के कारण 7 ध्वनियाँ हैं। प्रत्येक वर्ग का नाम पहले वर्ण के अनुसार होता है; यथा-
कवर्ग – क्, ख्, ग्, घ् ङ
चवर्ग – च्, छ्, ज्, झ्, ञ
टवर्ग – ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्, ड़, ढ़
तवर्ग – त्, थ्, द्, ध्, न्
पवर्ग – प्, फ्, ब्, भ्, म्
(2) अंतःस्थ व्यंजन –इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जिह्वा पूरी तरह से उच्चारण अवयवों को स्पर्श नहीं करती। ये मात्र चार हैं –य्, र्, ल्, व्।
(3) ऊष्म व्यंजन –इन व्यंजनों को बोलते समय ऊष्मा या गर्म हवा हल्की-सी सीटी बजाती हुई बाहर निकलती है। ये भी चार हैं-श्, ष्, स्, ह्।
(4) संयुक्त व्यंजन –एक से अधिक व्यंजनों के मेल से बने व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में चार मुख्य व्यंजन निम्नलिखित हैं;
क् + ष = क्ष (कक्षा, रक्षा) ज् + ञ = ज्ञ (ज्ञान, अज्ञात) त् +र = त्र (पत्र, चित्र) श् + र = श्र (श्रम, श्रमिक)
(5) व्यंजन द्वित्व –जब एक वर्ण दो बार मिलता है, तो उसे व्यंजन द्वित्व कहते हैं; यथा –
कुत्ता (त् + त = त्त) बच्चा (च् + च = च्च) अम्मा (म् + म = म्म)
वर्ण-संयोग
वर्णों के परस्पर मेल को वर्ण संयोग कहते हैं।
वर्ण-संयोग –
(1) व्यंजन + स्वर
(2) व्यंजन + व्यंजन
(1) व्यंजन एवं स्वर का संयोग –अभी तक आपने पढ़ा है कि स्वरों की सहायता के बिना व्यंजनों का उच्चारण आसान (संभव) नहीं। जब किसी व्यंजन में स्वर नहीं मिला हो, तो उसके नीचे (च् के नीचे जो चिन्ह लगा है उसे हलंत् कहते हैं) लगा देते हैं।
(2) व्यंजन से व्यंजन का संयोग –व्यंजन से व्यंजन का मेल संयुक्त ध्वनियाँ बनाता है।
व्यंजन से व्यंजन मिलाने के नियम
(क) जिन व्यंजनों के अंत में एक खड़ी रेखा होती है, उस रेखा को पाई कहते हैं। पाई वाले व्यंजन; यथा- ख्, ग्, घ्, च्, ज्, झ्, ञ, ण्, त्, थ्, ध्, न्, प्, ब्, भ्, म्, य्, ल्, व्, ष्, स् जब अपने से आगे वाले व्यंजन से मिलते हैं, तो इनकी पाई हटा ली जाती है; यथा –
ग् + य = ग्य (ग्यारह), त् + य = त्य (सत्य), स् + न = स्न (स्नान), स् + त = स्त (स्तुति)
(ख) बिना पाई वाले व्यंजन; यथा-ङ, छ्, ट्, ठ्, ड्, ढ्, द्, ह् (नीचे से गोल आकृति वाले) जब किसी व्यंजन (स्वर सहित) से मिलते हैं, तो इनमें हल (हलंत्) चिह्न लगा रहता है तथा ये जिनसे ये मिलते हैं वह व्यंजन पूरा लिखा जाता है; यथा –
द् + व = द् व (द् वारा) द् + भ = द् भ (अ द् भुत) द् + ध = द् ध (शु द् ध) ह् + न = ह् न (चि ह् न)
ध्यान देने की बात है कि –इन शब्दों को द्वारा,अद्भुत,शुद्ध एवं चिन्ह के रूप में नहीं लिखा जाना चाहिए, क्योंकि आजकल इन रूपों का प्रयोग सही नहीं माना जाता।
(ग) क् और फ् व्यंजनों की पाई बीच में होती है,इसलिए दूसरे व्यंजनों (स्वर सहित) के साथ संयुक्त करते समय इन व्यंजनों की घुंडी का झुका हिस्सा व हल (हलंत्) चिन्ह हटा दिया जाता है और इनका निम्नलिखित रूप बन जाता है-
क् + ल = क्ल (अक्ल) फ् + ल = फ्ल (फ्लैग) द् + त = क्त (रक्त) फ् + त = फ्त (हफ्ता)
(घ) र के संयोग में सबसे अधिक गलती पाइ जाती है। इसलिए इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
र के संयोग के 4 नियम हैं-
(1) जब र स्वर रहित (र्) होता है,तो यह अपने से आगे वाले वर्ण के ऊपर लगाया जाता है; यथा- (र्र)
र् + म = र्म (कर्म) र् + द = र्द (मर्द) र् + य = र्य (सौन्दर्य) र् + व = र्व (पर्वत)
(2) र से पहले कोई भी स्वर रहित व्यंजन हो, तो र उसके पैरों में (नीचे की ओर) लगाया जाता है तथा इसका रूप निम्न हो जाता है; यथा-
त् + र = त्र (पत्र) क् + र = क्र (विक्रेता) ग् + र = ग्र (संग्रहालय) द् + र = द्र (समुद्र)
(3) ट् तथा ड् के साथ र का संयोग होने पर र उनके नीचे निम्नलिखित रूप में जुड़ता है; यथा-
ट् + र =ट्र (ट्रेन, ट्रक) ड् + र = ड्र (ड्रामा, ड्रम)
(4) श् के साथ र का संयोग होने पर इसका रूप श्र हो जाता है; यथा-
श् + र = श्र (श्रीमान, श्रम, श्रेष्ठ)
(5) स् के साथ र का संयोग होने पर इसका रूप स्त्र हो जाता है; यथा-
स् + र = स्त्र (सहस्त्र, स्त्रोत)
विशेष :-
(क) द् य तथा ध के रूप में समानता के कारण विद्यार्थी अशुद्धि करते हैं।
ध्यान योग्य – द् य में द् + य का संयोग है, जबकि ध अकेला व्यंजन है। इसलिए वि द् यार्थी को विधार्थी, वि द् या को विधा लिखना या बोलना अशुद्ध है।
(ख) कभी-कभी द् य की ध्य की भांति उच्चारण करने के कारण भी अशुद्धि हो जाती है। इसके प्रति भी सावधान रहना चाहिए। वि द् यालय को विध्यालय, वि द् यार्थी को विध्यार्थी लिखना या बोलना अशुद्ध है।
(ग) द् वित्व व्यंजन; यथा- त् +त, ट् + ट, ड् + ड आदि को इस प्रकार लिखना चाहिए-
प त्ता , टट्टू, लड्डू
इनके स्थान पर पत्ता, ट्टू, लड्डू लिखने का चलन अब नहीं है। ऐसा लिखना अमान्य है।
उच्चारण
भाषा के अक्षरों को हम जिस प्रकार बोलते हैं, वह उच्चारण है। भाषा में उच्चारण का बहुत महत्व है। अशुद्ध उच्चारण की अनेक अशुद्धियाँ हो जाती हैं। इस अध्याय में उच्चारण संबंधी प्रमुख अशुद्धियों की चर्चा की जाएगी।
स्वरों के उच्चारण संबंधी अशुद्धियाँ
स्वरों संबंधित अशुद्धियाँ 4 प्रकार की होती हैं :-
(1) कुछ लोग हृस्व की जगह दीर्घ स्वर और दीर्घ स्वर की जगह हृस्व स्वर का उच्चारण करते हैं। इस वजह से शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। दिन की जगह दीन लिखने पर शब्द का अर्थ ही बदल जाता है।
सोमवार (दिन) दीन (भिखारी) समान (बराबर) सामान (वस्तुएं, चीजें) कूल (किनारा) कुल (योग)
अशुद्ध उच्चारण | शुद्ध उच्चारण |
1- किशन चाय पीने का आदि है। | किशन चाय पीने का आदी है। |
2- आचार बहुत स्वादिष्ट है। | अचार बहुत स्वादिष्ट है। |
3- आदर्श ओर राज अच्छे मित्र हैं। | आदर्श और राज अच्छे मित्र हैं। |
अशुद्ध उच्चारण | शुद्ध उच्चारण |
1- कपिल निरमल हृदय का व्यक्ति है। | कपिल निर्मल हृदय का व्यक्ति है। |
2- किसी धरम की निंदा नहीं करनी चाहिए। | किसी धर्म की निंदा नहीं करनी चाहिए। |
3- तुम्हारी बातों का मैं क्या अरथ समझूँ ? | तुम्हारी बातों का मैं क्या अर्थ समझूँ ? |
अशुद्ध उच्चारण | शुद्ध उच्चारण |
1- भारत में जन्ता का शासन है। | भारत में जनता का शासन है। |
2- वह ऊँचा सुन्ता है। | वह ऊँचा सुनता है। |
3- कृप्या आप मुझे वह किताब पकड़ाएँगे। | कृपया आप मुझे वह किताब पकड़ाएँगे। |
अशुद्ध उच्चारण | शुद्ध उच्चारण |
1- तुम्हारी इस्थिति में कुछ सुधार लग रहा है। | तुम्हारी स्थिति में कुछ सुधार लग रहा है। |
2- कमल यहाँ का इस्थानीय निवासी है। | कमल यहाँ का स्थानीय निवासी है। |
3- हमें भगवान की अस्तुति करनी चाहिए। | हमें भगवान की स्तुति करनी चाहिए। |
(1) व्यंजनों में र की गलतियाँ सबसे अधिक होती हैं; यथा-
प्रकार का उच्चारण परकार की तरह और कर्म का करम की तरह करना।
र उच्चारण में निम्नलिखित सावधानियाँ अपनानी चाहिए
(क) यदि किसी अक्षर के पैर में र लगा है; यथा-भ्रम, क्रम, प्रण आदि तो र को भ, क भ्रम = भ् रम, क्रम = क् रम, प्रण = प् रण आदि।
(ख) यदि र शब्द किसी अक्षर के ऊपर लगा हो; यथा-धर्म, शर्त, परिवर्तन आदि तो ऐसी हालत में र स्वर रहित आधा (र्) बोला जाएगा। शुरू का अक्षर पूरा, बीच का र आधा (र्) और अंत का अक्षर पूरा; यथा-धर्म = ध र् म, शर्त = श र् त, मर्द = म र् द।
(ग) यदि ट, ठ, ड, ढ में र मिला है; यथा-ट्रक, ड्रामा, ड्रम आदि में तो जिस अक्षर के नीचे र लगा है, वह स्वर रहित अक्षर (आधे अक्षर) की तरह और र स्वर रहित अक्षर (पूरे अक्षर) की तरह बोला जाएगा; यथा- ट्रक = ट् + र + क, ट्राफी = ट् + र् + ऑ + फ् + ई।
(2) ऋ का उच्चारण – ऋ का उच्चारण रि की तरह ही किया जाता है। यदि अक्षर के पैर में ऋ की मात्रा (ृ) लगी हो, तो वह अक्षर इस प्रकार बोला जाएगा जैसे उस अक्षर में रि की मात्रा मिली हो; जैसे-कृपा, वृक्ष, मृग आदि।
(3) व्यंजनों के उच्चारण में सबसे अधिक अशुद्धि संयुक्त व्यंजनों के उच्चारण में होती है; यथा-
लछमण | लक्ष्मण | कच्छा | कक्षा | रच्छा | रक्षा |
छन | क्षण | वस्तर | वस्त्र | चित्तर | चित्र |
संग्या | संज्ञा | परीच्छा | परीक्षा | छुधा | क्षुधा |
(क) कल – काल, काम – कम (ख) मिल – मील, दीन – दिन
पर – पार, भार – भर, पिला – पीला, बीन – बिन
इसे दूध पिला दो। यह आम पीला है।
(ग) उन – ऊन, चूना – चुना (घ) बेर – बैर, बैल – बेल
कुल – कूल, सूना – सुना चेन – चैन, मैला – मेला
आ बैल मुझको मार। बेल बढ़ रही है।
(ङ) सो – सौ, जौ – जो (च) हंस – हँस, आधी – आँधी
ओर – और, शौक – शोक साँस – सास, काटा – काँटा
हँस (पक्षी) पानी में तैर रहा है। हंस (हँसना) वह बच्चा हंस रहा है।
(5) देश के विभिन्न प्रांतों के लोग भी हिन्दी-उच्चारण में अलग-अलग प्रकार की अशुद्धियाँ करते हैं; यथा-
(क) पंजाबी भाषा के प्रभाव से पंजाब के विद्यार्थी प्रायः राजेन्द्र को रजिन्दर, मिनिस्टर को मनिस्टर, पुत्र को पुत्तर, शारीरिक को शरीरक, बाबू को बाऊ, सामान को समान, राष्ट्र को राष्टर, प्रकार को परकार, प्राप्त को परापत, चाहिए को चहिए, नाराज को नराज जैसी अनेक गलतियाँ करते हैं।
(ख) हरियाणा क्षेत्र के विद्यार्थी प्रायः ऐसी गलतियाँ क्र देते हैं-स्कूल को सकुल, स्टूल को सटूल, स्टेशन को सटेशन या इस्टेशन और न के स्थान पर ण; यथा-खाना-खाणा, जाना-जाणा, पीना-पीणा, सोना-सोणा, रोना-रोणा आदि।
(ग) सिन्धी और बिहारी विद्यार्थी प्रायः ड़ का र तथा ण की जगह ड़ का उच्चारण करते सुने जाते हैं; यथा-
अशुद्ध | शुद्ध |
घोरा | घोड़ा |
दौर | दौड़ |
कपरा | कपड़ा |
गड़ित | गणित |
सरक | सड़क |
झगरा | झगड़ा |
अशुद्ध | शुद्ध |
पइसा | पैसा |
बइल | बैल |
सउदा | सौदा |
पउधा | पौधा |
अशुद्ध | शुद्ध |
रॉशॉगुल्ला | रसगुल्ला |
शॉफल | सफल |
अशुद्ध | शुद्ध |
शाहब | साहब |
शामान | सामान |
कुछ सामान्य अशुद्धियाँ
(1) अ, आ की अशुद्धियाँ
अशुद्ध | शुद्ध |
अलोचना | आलोचना |
अधार | आधार |
अगामी | आगामी |
संसारिक | सांसारिक |
आधीन | अधीन |
सप्ताहिक | साप्ताहिक |
अशुद्ध | शुद्ध |
तिथी | तिथि |
रानीयाँ | रानियाँ |
परिक्षा | परीक्षा |
पत्नि | पत्नी |
श्रीमति | श्रीमती |
नारीयाँ | नारियाँ |
अशुद्ध | शुद्ध |
साधू | साधु |
गुरू | गुरु |
पुजनीय | पूजनीय |
प्रभू | प्रभु |
रुप | रूप |
डाकु | डाकू |
अशुद्ध | शुद्ध |
रितु | ऋतु |
क्रपा | कृपा |
क्रष्ण | कृष्ण |
प्रथक | पृथक |
अशुद्ध | शुद्ध |
एसा | ऐसा |
एश्वर्य | ऐश्वर्य |
एैक्य | ऐक्य |
जै | जय |
अशुद्ध | शुद्ध |
उपरोक्त | उपर्युक्त |
पड़ौस | पड़ोस |
त्यौहार | त्योहार |
आलोकिक | अलौकिक |
अशुद्ध | शुद्ध |
हंसना | हँसना |
पांचवां | पाँचवाँ |
दांत | दाँत |
जहां | जहाँ |
अशुद्ध | शुद्ध |
प्राय | प्रायः |
अतःएव | अतएव |
निसंतान | निःसंतान |
प्रातकाल | प्रातःकाल |
अशुद्ध | शुद्ध |
आदरनीय | आदरणीय |
किरन | किरण |
प्रनाम | प्रणाम |
स्मरन | स्मरण |
अशुद्ध | शुद्ध |
पेड | पेड़ |
पढाई | पढ़ाई |
चढना | चढ़ना |
मेंढ़क | मेढक |
अशुद्ध | शुद्ध |
प्रमात्मा | परमात्मा |
करम | कर्म |
परसाद | प्रसाद |
मरयादा | मर्यादा |
अशुद्ध | शुद्ध |
जबाब | जवाब |
बसंत | वसंत |
बीबी | बीवी |
बन | वन |
अशुद्ध | शुद्ध |
विषेश | विशेष |
निर्दोश | निर्दोष |
प्रसंशा | प्रशंसा |
निश्फल | निष्फल |
अशुद्ध | शुद्ध |
क्षात्र | छात्र |
छत्रिय | क्षत्रिय |
छमा | क्षमा |
लछमी | लक्ष्मी |
अशुद्ध | शुद्ध |
आग्या | आज्ञा |
प्रतिग्या | प्रतिज्ञा |
ज्ञारह | ग्यारह |
सौभायज्ञ | सौभाग्य |
अशुद्ध | शुद्ध |
सिंघ | सिंह |
घनिष्ट | घनिष्ठ |
बरसा | वर्षा |
मूरख | मूर्ख |
अशुद्ध | शुद्ध |
बिमारी | बीमारी |
ग्रहस्थ | गृहस्थ |
ज्योत्सना | ज्योत्स्ना |
ग्रहीत | गृहीत |
स्वास्थ | स्वास्थ्य |
रचियता | रचयिता |
चिन्ह | चिह्न |
अध्यन | अध्ययन |
दिपावली | दीपावली |
हिंदु | हिंदू |
उज्जवल | उज्ज्वल |
आर्दश | आदर्श |
वापिस | वापस |
कवियत्री | कवयित्री |
प्रहलाद | प्रह्लाद |
सन्यास | संन्यास |
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वर्ण किसे कहते हैं?
Ans. वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके खंड (टुकड़े) नहीं किए जा सकते, वर्ण कहलाती है।
हिन्दी वर्णमाला में कितने वर्ण हैं?
Ans. 52 वर्ण
व्याकरण में ध्वनि का अर्थ क्या होता है?
Ans. व्याकरण में ध्वनि का अर्थ वर्ण होता है।
उच्चारण और प्रयोग के आधार पर वर्णों के कितने भेद होते हैं?
Ans. दो भेद – (1) स्वर, (2) व्यंजन।
स्वर किसे कहते हैं?
Ans. जिन वर्णों को बोलने के लिए अन्य ध्वनियों का सहारा नहीं लेना पड़ता,उन्हें हम स्वर कहते हैं।