भाषा वह साधन है, जिसके कारण मनुष्य अपने विचारों को दूसरों तक भली-भांति पहुंचाने का सहारा लेता है। अर्थात सीधे-सरल शब्दों में कहें तो – “अपने मन के भावों और विचारों को बोलकर या लिखकर प्रकट करने के साधन को भाषा कहते हैं।
पशु-पक्षी जानवर आदि जिस बोली का प्रयोग करते हैं, उससे केवल दु:ख, सुख आदि मन के विकारों के आलावा और कोई भी बात नही जानी जाती। वहीं मनुष्य की भाषा से उनके सारे विचार भली-भांति प्रकट होते हैं, यही कारण है कि यह भाषा ‘व्यक्त’ भाषा कहलाती है, वहीं दूसरी भाषाएं या बोलियाँ ‘अव्यक्त’ कहलाती हैं।
संसार में भिन्न-भिन्न प्रकार की भाषाएं बोली जाती हैं, जैसे – हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, जर्मन, चीनी, रूसी, फ्रेंच आदि । हमारे देश के विभिन्न प्रांतों में भी अनेक तरह की भाषाएं बोली जाती हैं । जैसे – हिन्दी, पंजाबी, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम आदि।
Types of Language
भाषा के प्रकार –
देखा जाए तो भाषा के दो प्रकार होते हैं –
(1) मौखिक भाषा
(2) लिखित भाषा
(1) मौखिक भाषा – भाषा के जिस रूप से मन के विचारों और भावों को बोलकर या सुनकर आदान-प्रदान किया जाता है, उसे ही मौखिक भाषा कहा जाता है।
(2) लिखित भाषा – यह वह भाषा होती है जिसमें जब कोई व्यक्ति लिखकर या पढ़कर विचारों एवं भावों का आदान-प्रदान करता है तो उसे लिखित भाषा कहते हैं।
सांकेतिक भाषा – संकेतों द्वारा भी व्यक्ति अपने विचारों को दूसरों को समझा सकता है, जिसे सांकेतिक भाषा कहते हैं। ऐसा देखने में आता है कि सांकेतिक भाषा का प्रयोग सभी प्रकार के विचारों को प्रकट करने के लिया नहीं किया जा सकता इसलिए इससे सर्व-साधारण का काम नहीं चल सकता। यही वजह है कि भाषा के दो ही रूप माने जाते हैं।
व्याकरण (Grammar) –
व्याकरण का ज्ञान हमारे लिए क्यों आवश्यक है ?
ऐसी अशुद्धियों से बचने के लिए भाषा का ठीक से प्रयोग करना आना आवश्यक है। सभी के लिए भाषा का शुद्ध बोलना या लिखना आ जाए एवं भाषा के प्रयोग में हमसे कोई गलती न हो, इसके लिए व्याकरण का ज्ञान बहुत आवश्यक है।
“जिस शास्त्र से किसी भाषा को शुद्ध बोलने और लिखने के नियमों का बोध होता है, उसे ही व्याकरण कहते हैं।” व्याकरण के अंग तथा विभाग –
व्याकरण के मुख्य रूप से 4 अंग अथवा विभाग हैं –
(1) वर्ण-विचार
(2) शब्द-विचार
(3) वाक्य-विचार
(4) पद-विचार
(1) वर्ण-विचार – देखा जाए तो भाषा की सबसे छोटी इकाई अक्षर अथवा वर्ण होते हैं। इस हिस्से में वर्णों के प्रकार, भेद, उच्चारण एवं उनके प्रयोग के बारे में विचार किया जाता है।
(2) शब्द-विचार – इसमें वर्णों के मेल से शब्द बनते हैं। इस हिस्से में शब्दों के भेद, उत्पत्ति, रचना, आदि के बारे में विचार किया जाता है।
(3) वाक्य विचार – वर्णों के मेल से शब्द बनते हैं। इस हिस्से में वाक्यों के भेद, रचना, विराम चिन्हों, आदि के विषय में विचार किया जाता है।
(4) पद-विचार – इसके अंतर्गत संज्ञा, सर्वनाम आदि पदों के स्वरूप तथा प्रयोग पर विचार किया जाता है।
लिपि -(Script) यानि भाषा की ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिन्हों को प्रयोग में लाया जाता है, उसे लिपि कहते हैं। लिपि भाषा को लिखने का अपना एक ढंग है। अतः संसार की समस्त भाषाओं की अपनी-अपनी लिपियाँ हैं।
भाषा और उनकी लिपियाँ –
भाषा | लिपि |
संस्कृत | देवनागरी |
कश्मीरी | देवनागरी |
नेपाली | देवनागरी |
बोडो | देवनागरी |
मराठी | देवनागरी |
कोंकणी | देवनागरी |
संथाली | देवनागरी |
जर्मन | रोमन |
अंग्रेजी | रोमन |
फ्रांसीसी | रोमन |
उर्दू | फ़ारसी |
पंजाबी | गुरुमुखी |
बोली -(Dialect) – भाषा के क्षेत्रीय रूप को बोली कहा जाता है।
हमारा देश (भारत) एक विशाल देश है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार की भाषाएं बोली जाती हैं, परंतु इस विशाल देश के भिन्न-भिन्न हिस्से में अलग-अलग बोलियाँ बोली जाती हैं। बोलियों का स्वरूप अपने-अपने क्षेत्र में परिवर्तित होता रहता है।
हिन्दी के आलावा प्रत्येक प्रदेश की अपनी अलग-अलग बोली होती है। जैसे –
पूर्वी उत्तर प्रदेश | अवधी |
बिहार | भोजपुरी |
कर्नाटक | कन्नड़ |
तमिलनाडु | तमिल |
कश्मीर | डोगरी |
उत्तरांचल | गढ़वाली, कुमाऊँनी |
पश्चिम बंगाल | बांग्ला |
राजस्थान | राजस्थानी, मारवाड़ी |
हरियाणा | हरियाणवी |
भाषा किसे कहते हैं?
Ans. अपने मन के भावों एवं विचारों को बोलकर या लिखकर प्रकट करने के साधन को भाषा कहते हैं।
भाषा के मुख्यतः कितने प्रकार होते हैं?
Ans. 2 प्रकार – (1) मौखिक, (2) लिखित
भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है?
Ans. भाषा की सबसे चोटी इकाई अक्षर अथवा वर्ण है।
व्याकरण किसे कहते हैं?
Ans. जिस शास्त्र से किसी भाषा को शुद्ध बोलने और लिखने के नियमों का बोध होता है, उसे व्याकरण कहते हैं।
बोली किसे कहते हैं?
Ans. भाषा के क्षेत्रीय रूप को बोली कहते हैं।